चकोतरा का उपयोग, फायदा एवं चकोतरा की खेती
चकोतरा एक ऐसा फल है जिसका स्वाद खट्टा मीठा होता है। चकोतरा जो बाहर से संतरे जैसा दिखने वाला फल है। चकोतरा संतरा नींबू प्रजाति का फल है। जब यह फल कच्चा होता है तो इसके छिलके का रंग हरा होता है और जब यह पूरी तरह से पक जाता है तो इसका रंग पीला या हल्का नारंगी हो जाता है।
चकोतरा में पाये जाने वाले खनिज ( Minerals Found in Grapefruit )
चकोतरा के स्वास्थ्यवर्धक फायदे ( Health Benefits Of Grapefruit )
- चकोतरा हड्डियों को मजबूत बनाने और गठिया रोग को दूर करने में मदद करता है।
- चकोतरा आंखों की रोशनी बढ़ाता है बल्कि आंखों को स्वस्थ भी बनाता है।
- चकोतरा कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करते हैं बल्कि कोलेस्ट्रॉल से जुड़ी समस्याओं जैसे दिल की समस्याओं आदि के खतरे को भी कम करने में मदद करता है।
- बालों को मजबूत और खूबसूरत बनाने में चकोतरा बहुत उपयोगी होता है।
- रोजाना चकोतरा के जूस का सेवन करने से थकान, कब्ज, अपच जैसी समस्याओं से बचाने में मददगार होता है।
चकोतरा की खेती ( Grapefruit Cultivation )
चकोतरा की खेती विशेषकर गर्म एवं शुष्क क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है। इसे अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में बोया जाता है। पौधे अपने पांचवें महीने के आसपास बीज से अंकुरित होते हैं और पूरी तरह विकसित होने में 8-10 महीने लग सकते हैं। पौधों के बीच आवश्यक अंतराल पर पानी देना आवश्यक है. उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करके, रोपण और अंकुरण के साथ उच्च उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है, और अंगूर के फल का उपयोग स्वादिष्टता और विपणन मूल्य संवर्धन के लिए किया जाता है।
1. चकोतरा की खेती के लिए जलवायु मिट्टी व तापमान ( Climate Soil and Temperature for Grapefruit Cultivation )
चकोतरा की खेती के लिए उपोष्ण कटिबंधीय अर्द्धशुष्क जलवायु अत्यंत उपयुक्त होती हैं। इसके लिए अधिक ठण्ड और पाला सही नहीं होता हैं। फलों के पकने के समय शुष्क जलवायु और कम तापमान में फलों में अच्छी मिठास विकसित होती हैं। हल्की एवं मध्यम उपज बलुई दोमट वाली मिट्टी उपयुक्त होता है, इसकी खेती के लिए अच्छे जलनिकास वाली लाल लैटराइट मिट्टी भी उपयुक्त होती हैं। इसके लिए अम्लीय पी.एच. मान मिट्टी अनुकूल होती हैं।
2. खेत की तैयारी( Field Preparation )
पौधरोपण के पहले खेत की अच्छी तरह जुताई कर खेत को समतल और भुरभुरा बना लेना चाहिए। और खेत को खरपतवार मुक्त कर गड्ढो की खुदाई करें। और गड्ढो में पौधरोपण से पूर्व खाद एवं वर्मी कम्पोस्ट डालकर पौधों की रोपाई करना चाहिए।
3. चकोतरा की किस्में ( Grapefruit Varieties )
इसकी किस्मों में से कुछ किस्में मार्स सीडलेस, गंगानगर रेड, रूबी रेड, डंकन, फोस्टर, थाम्पसन, मार्श आदि है।
4. बुवाई का समय तरीका व पौधे लगाने के लिए दुरी ( Sowing Time Method and Distance for Planting )
पौधे लगाने के लिए जुलाई-अगस्त का माह सबसे उपयुक्त हैं। बीज के माध्यम और कलम विधि द्वारा चकोतरा की बुवाई की जाती हैं। इसे बेन्डिंग और ग्राफ्टिंग विधि द्वारा विकसित किया जाता है। सर्वप्रथम बीजों द्वारा नर्सरी तैयार की जाती हैं। पौधा लगाने के लिए 5X5 मीटर की वर्गाकार विधि से 50X50X50 से.मी. के गड्ढे खोद लें।
5. चकोतरा की खेती में सिंचाई प्रबंधन ( Irrigation Management in Grapefruit Cultivation )
चकोतरा के पौधों के विकास के लिए खेत में नमी की आवश्यकता होती हैं इसीलिए पहली सिंचाई पौधा रोपने के तुरंत बाद करें। उसके बाद खेत को नम रखने के लिए जरुरत पड़ने पर सिचाई देते रहे। खरपतवार की रोकथाम के लिए आवश्यकतानुसार समय समय पर निराई गुड़ाई करना चाहिए जिससे पौधे के विकास में कोई बाधा ना हो।
चकोतरा के पौधों के विकास और अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए उसका देखभाल करना जरुरी है इसीलिए समय-समय पर पौधों की कटाई-छटाई करते रहना चाहिए।
चकोतरा के उत्पादक स्थान ( Grapefruit Production Areas )
चकोतरा की खेती में लागत और आय ( Cost and Earnings in Grapefruit Cultivation )
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