परवल का उपयोग, फायदा एवं परवल की खेती

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परवल का वैज्ञानिक नाम त्रिकोसांथीस डीओइका ( Trichosanthes dioica ) है। परवल भारत की लोकप्रिय सब्ज़ियों में से एक है। परवल एक प्रकार की सब्ज़ी है। परवल को पटल कहते हैं। इसकी लता जमीन पर फैलती है। परवल को हिंदी में परवल, तमिल में कोवक्काई और बंगाली में पोटोल के नाम से भी जाना जाता है। इनके आकर छोटे और बड़े से लेकर मोटे और लम्बे में 2 से 6 इंच ( 5 से 15 सेंटीमीटर ) तक हो सकते हैं। ये हरे रंग के होते हैं।

परवल में पाए जाने पोषक तत्व ( Nutrients Found in Parwal / Pointed Gourd )

परवल में विटामिन ( Vitamin ) A , विटामिन B1, विटामिन B2, विटामिन C, मैग्नीशियम ( Magnesium ), पोटैशियम ( Potassium ), फाइबर ( Fiber ), फास्फोरस ( Phosphorus ), कैल्शियम ( Calcium ) के अलावा एंटीऑक्सीडेंट ( Anti-oxidants ) मात्रा में पाए जाते हैं।

परवल के सेवन से स्वास्थ्यवर्धक फायदे ( Health Benefits of Consuming Parwal / Pointed Gourd )

परवल कैलोरी की मात्रा कम कर कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करता है।

परवल में कब्ज को दूर करने के गुण होते हैं।

परवल मधुमेह की समस्या के लिए भी परवल बेहद लाभदायक है।

परवल पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।

परवल खून साफ करने के लिए परवल काफी फायदेमंद होता है।

परवल भूख न लगने की स्थिति में परवल खाना काफी लाभदायक होता है।

परवल खाने से पेट की सूजन ठीक होती है।

परवल की खेती ( Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

परवल की खेती के लिए नर्सरी में पौधे तैयार किए जाते हैं। परवल के पौधों की जड़ों के जरिए इसकी रोपाई का काम भी किया जाता है। परवल को हमेशा ऊँचे स्थान पर लगाना चाहिए, जहां पानी का जमाव नहीं होता हो। रोपाई का समय भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग होता है। मैदानी भागों में परवल की रोपनी का उचित समय मध्य जुलाई से अक्टूबर तक और दियारा क्षेत्रों में सितम्बर से अक्टूबर तक होता है। परवल के पौधे के बीज बोने का सबसे अच्छा समय वसंत से गर्मी के मौसम यानी फरवरी-जुलाई के महीनों के बीच है। फरवरी से सितंबर के बीच आप कभी भी अपने घर के बगीचे में परवल की कटिंग लगा सकते हैं।

परवल की खेती में आवश्यक मिट्टी, जलवायु और तापमान ( Soil, Climate and Temperature Required in Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

परवल भारी मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की मिट्टी में उगाई जा सकती है, लेकिन परवल की अच्छी उपज के लिए अच्छी जल निकासी वाली दोमट, कार्बनिक पदार्थ की पर्याप्त मात्रा वाली बलुई दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। परवल की खेती के लिए नम और गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। इसकी खेती आमतौर पर उन जगहों पर की जाती है जहां औसत तापमान 25°C से 35°C और औसत वार्षिक वर्षा 1500 से 2000 मिलीलीटर होती है। होती है। पौधों की अच्छी उपज के लिए 21°C से  27°C और फल के लिए 21°C से 24°C उपयुक्त माना जाता है।

परवल की खेती की तैयारी और बुवाई ( Preparation and Sowing of Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

मई-जून के महीनों में खेत को एक बार मिट्टी पलटने वाले हल से जोतकर खुला छोड़ देना चाहिए जिससे हानिकारक कीट मर जाते हैं तथा खरपतवार सूख जाते हैं। लट्ठ की रोपाई के लगभग एक माह पूर्व अच्छी तरह सड़ी हुई गाय का गोबर या कम्पोस्ट 200-250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। बाद में रोपाई के समय देशी हल से खेत की 3-4 बार जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी एवं समतल बनाना आवश्यक है।

बुवाई की विधि ( Sowing Method )

परवल की खेती में बुवाई 3 विधि से होती है ( In Parwal Cultivation, Sowing is Done by 3 Methods ):

बीज द्वारा बुआई ( Sowing by Seed )

फलों से बीज निकालने के बाद सबसे पहले उन्हें रेतीली नर्सरी क्यारियों में बोकर युवा तैयार कर लिए जाते हैं और दो-तीन माह के युवा को तैयार खेत में शाम को लगाकर पानी पिला देना चाहिए। बीज द्वारा परवल की खेती करने में कठिनाई है कि नर पौधे अधिक हो जाते हैं और मादा पौधों की संख्या कम होने से उपज कम हो जाती है।

जड़ों की कलम द्वारा बुआई ( Root Grafting )

इस विधि में जड़ सहित तने का 1 या 2 इंच भाग जिस पर पाँच-छह गांठें होती हैं, लगा दिया जाता है। इस विधि में पौधे तेजी से बढ़ते हैं और फल जल्दी लगते हैं, लेकिन कठिनाई यह है कि परवल के बड़े पैमाने पर रोपण के लिए बड़ी संख्या में जड़ वाली कलमों की उपलब्धता एक बड़ी समस्या है।

लता द्वारा बुवाई ( Sowing by Creeper )

इस विधि में सालभर पुरानी लताएँ जिनकी लम्बाई कम से कम 120-150 सेंटीमीटर हो को लच्छी बनाकर रोपते हैं। कहीं-कहीं लच्छी का दोनों किनारा जमीन से ऊपर रखते हैं और बीच का हिस्सा मिट्टी में दबा देते हैं। उत्तरप्रदेश और बिहार में परवल लगाने की यह एक लोकप्रिय विधि है।

परवल की उन्नत किस्में ( Improved Varieties of Parwal / Pointed Gourd )

स्वर्ण आलोकिक : इस प्रकार के परवल का आकार अंडे के समान तथा छिलके का रंग हल्का हरा होता है। इसके बीज कम होते हैं। इसलिए इसका इस्तेमाल मिठाई बनाने में ज्यादा होता है।

काशी अलंकार : इस किस्म के फलों का रंग हल्का हरा होता है और इसके बीज भी नरम होते हैं। इससे प्रति हेक्टेयर 200 क्विंटल के करीब फसल प्राप्त हो जाती है।

काशी सुफल : हल्के हरे रंग और सफेद धारियों वाले इस परवल का इस्तेमाल मिठाई बनाने में अधिक किया जाता है।  इनका स्वाद अच्छा होता है।

स्वर्ण रेखा : इस किस्म के परवल का रंग गहरा हरा होता है और उसपर सफेद धारियां होती हैं। इसके पौधे की हर गांठ पर फल लगते हैं।

एफ. पी-1 : इसके फल गोल एवं हरे रंग के होते हैं,इसे मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार प्रदेश में उगाया जाता है।

एफ. पी-3 :  इस प्रजाति के फल पर्वल्याकार के होते हैं तथा इन पर हरे रंग की धारियां होती हैं। ये उत्तर प्रदेश एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए उपयुक्त हैं।

राजेन्द्र परवल-1 :  यह किस्म मुख्य रूप से बिहार में उगाई जाती है।

राजेन्द्र परवल-2 :   ये किस्म उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लिए उपयुक्त है।

इसके अलावा कुछ अन्य लोकप्रिय परवल की उन्नत प्रजातियां होती हैं जैसे- बिहार शरीफ, हिल्ली, डंडाली, नरेंद्र परवल 260, नरेंद्र परवल 307, फैजाबाद परवल 1, फैजाबाद परवल 2, फैजाबाद परवल 3, फैजाबाद परवल 4, निमियां, सफेदा, सोनपुरा, संतोखबा, तिरकोलबा, गुथलिया इत्यादि परवल की उन्नत प्रजातियां है।

परवल की खेती में बीज की मात्रा एवं बीज का उपचार ( Quantity of Seeds and Treatment of Seeds in Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

परवल की खेती में बीज के रूप में 2500 से 3000 लताएँ (बेलें) या कटिंग्स/हेंक्टेयर की आवश्यकता होती है। पके फलों से बीज निकालकर सर्वप्रथम रेतीली नर्सरी क्यारियों में बोकर युवा पौध तैयार कर लिए जाते हैं तथा दो-तीन माह के युवा पौध को तैयार खेत में शाम के समय रोपकर पानी देना चाहिए।

परवल की खेती में फसल की देखभाल ( Crop Care in Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

अधिक पानी देने से जल-जमाव हो सकता है जिससे पौधे की जड़ सड़ सकती है। बरसात के मौसम में अतिरिक्त पानी को छान लेना चाहिए। सर्दियों में परवल के पौधे ठीक से नहीं उग पाते हैं। अधिक वर्षा या जल भराव वाले क्षेत्रों में इसकी खेती न करें, क्योंकि जब फसल में जलभराव हो जाता है तो परवल के पौधे सड़ने लगते हैं और पूरी उपज सड़ने लगती है।

परवल की खेती में सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन ( Irrigation and Fertilizer Management in Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

परवल के पौधे या जड़ों की रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर दी जाती है, ताकि पौधों का विकास ठीक से हो सके। इसके अलावा हर 8 से 10 दिन में हल्की सिंचाई करनी होती है। परवल की खेती के लिए सर्दियों में 15 से 20 दिनों के अंतराल पर और गर्मियों में 10 से 12 दिनों के अंतराल पर सिंचाई कम करनी चाहिए। परवल की खेती से अच्छे उत्पादन के लिये प्रति हेक्टेयर खेत में 250 से 300 क्विंटल अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद इस्तेमाल की जाती है।

परवल की खेती में फसल की कटाई का समय ( Harvesting time in Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

साधारणत: मार्च माह के मध्य से पौधों पर फल लगना शुरू हो जाता है। मार्च माह प्रारम्भ में फल लगने के 10-12 दिनों के बाद फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। इस प्रकार मार्च एवं अप्रैल माह में फलों की तोडनी प्रति सप्ताह एक बार तथा मई में प्रति सप्ताह दो बार अवश्य करनी चाहिए। फलों की तोड़ाई मुलायम एवं हरी अवस्था में सूर्योदय से पहले करनी चाहिए। इससे फल अधिक समय तक ताजे बने रहते हैं।

 

परवल के उत्पादक राज्य ( Parwal / Pointed Gourd Producing States )

परवल की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, मद्रास, महाराष्ट्र, गुजरात, केरल और तमिलनाडु में प्रचलित है।

परवल की खेती में लागत और कमाई ( Cost and Earning in Parwal / Pointed Gourd Cultivation )

पौधे, रोपाई और सिंचाई समेत सभी खर्चों को जोड़ दें तो एक एकड़ में परवल की खेती पर करीब 25 हजार रुपये का खर्च आता है। साथ ही करीब 150 से 250 क्विंटल उत्पादन होता है। बाजार में अगर परवल के थोक भाव की बात करें तो यह कम से कम 3000 से 4000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बिकता है। अगर 3000 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से 4.5 लाख रूपये की कमाई होती है। 

आप शबला सेवा की मदद कैसे ले सकते हैं? ( How Can You Take Help of Shabla Seva? )

  1. आप हमारी विशेषज्ञ टीम से खेती के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  2. हमारे संस्थान के माध्यम से आप बोने के लिए उन्नत किस्म के बीज प्राप्त कर सकते हैं।
  3. आप हमसे टेलीफोन या सोशल मीडिया के माध्यम से भी जानकारी और सुझाव ले सकते हैं।
  4. फसल को कब और कितनी मात्रा में खाद, पानी देना चाहिए, इसकी भी जानकारी ले सकते हैं।
  5. बुवाई से लेकर कटाई तक, किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न होने पर आप हमारी मदद ले सकते हैं।
  6. फसल कटने के बाद आप फसल को बाजार में बेचने में भी हमारी मदद ले सकते हैं।

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