शकरकंद का उपयोग, फायदा एवं शकरकंद की खेती

शकरकंद का वैज्ञानिक नाम इपोमिया बटाटास ( Ipomoea Batatas ) है। यह एक खाद्य पदार्थ है, जो आलू से काफी मिलता-जुलता है। शकरकंद को मीठा आलू के नाम से भी जाना जाता है। इसका पौधा वार्षिक होता है, जो ‘कनवोलुलेसी ( Convolulaceae )’ कुल का होता है। इसकी रूपांतरित जड़ तने के जोड़ से निकलती है जो मिट्टी में जाकर फूल जाती है। जड़ का रंग लाल या भूरा होता है और यह अपने अंदर भोजन का संग्रह करती है।

शकरकंद मुख्यता तीन प्रकार के पाए जाते है, गुलाबी शकरकंद, लाल शकरकंद और सफेद शकरकंद जिसे लोग बड़े चाव से खाते हैं, इसकी तासीर गर्म होती है और हाई कैलोरी ( High Calorie ) के लिहाज से यह एक संपूर्ण आहार है। शकरकंद को लोग कई तरह से पका कर खाते हैं, मसलन कुछ लोग शकरकंद की सब्जी बनाकर खाते हैं, कुछ लोग उबाल कर खाते हैं और कुछ लोग आग में पकाकर खाते हैं इसके अलावा लोग शकरकंद से कई तरह की रेसिपी भी बनाते हैं जैसे शकरकंद की खीर, शकरकंद की सब्जी |

शकरकंद में पाए जाने वाले खनिज ( Minerals Found in Sweet Potato )

इसमें प्रोटीन ( Protein ), विटामिन ( Vitamin )-A, विटामिन-B, विटामिन-C, पोटैशियम ( Potassium ), फॉस्फोरस ( Phosphorus ), मैग्नीशियम ( Magnesium ) और आयरन ( Iron ) जैसे खनिज लवद और साथ में सूक्ष्म तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।

शकरकंद के स्वास्थ्यवर्धक फायदे ( Health Benefits Of Sweet Potato )

  1. शकरकंद पोटेशियम का एक अच्छा स्रोत होने के कारण आपके रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है, जिससे हृदय की समस्याओं का खतरा कम होता है।
  2. शकरकंद डाइजेस्टिव फाइबर ( Digestive Fiber ) से भरपूर होता है और इसमें मैग्नीशियम जैसे मिनरल्स भी होते हैं जो पाचन को बेहतर बनाने में मदद करते है। 
  3. शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करता है। 
  4. शकरकंद में फाइबर की मात्रा पाई जाती है, जो पाचन में काफी मदद करती है। शकरकंद के सेवन से कब्ज की समस्या को दूर किया जा सकता है।
  5. शकरकंद बीटा कैरोटीन से भरपूर होता है जो प्रतिरक्षा तंत्र ( Immune System ) को मजबूत बनाने में मदद करता है। 
  6. शकरकंद गठिया रोग को कम करने में फायदेमंद होता है।
  7. यह वजन कम करने, सांस लेने की समस्या, गठिया और पेट के अल्सर ( Ulcers ) से लड़ने में मददगार होता है।

शकरकंद की खेती ( Sweet Potato Cultivation )

यह फसल मुख्य रूप से अपने मीठे स्वाद और स्टार्ची जड़ों के लिए उगाई जाती है। शकरकंद सब्जी और फल दोनों में आता है। शकरकंद एक कंद वाली सब्जी की फसल है, इसकी खेती आलू की खेती के समान ही की जाती है। इसके पौधे जमीन के अंदर और बाहर दोनों जगह उगते हैं। इसके पौधे जमीन के ऊपर बेल के रूप में फैलते हैं।                                                                                                   

शकरकंद की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान ( Suitable Soil, Climate and Temperature For Sweet Potato Cultivation )

शकरकंद की खेती के लिए व्यावसायिक रूप से उच्च उत्पादन प्राप्त करने के लिए किसी भी उपजाऊ और अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में की जा सकती है लेकिन अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है। कठोर, पथरीली और जलभराव वाली भूमि में इसकी खेती न करें क्योंकि ऐसी जगहों पर इसके कंद ठीक से विकसित नहीं हो पाते और उपज भी प्रभावित होती है। इसकी खेती में भूमि का पी एच मान 5.8 से 6.8 के बीच होना चाहिए। शकरकंद का पौधा उष्णकटिबंधीय जलवायु का होता है और भारत में इसकी खेती तीनों मौसमों में की जा सकती है। शकरकंद के पौधों को शुरू में अंकुरित होने के लिए 22 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। अंकुरण के बाद पौधे के विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। इसके पौधे न्यूनतम 22 डिग्री और अधिकतम 35 डिग्री तापमान ही सहन कर सकते हैं।

खेत की तैयारी ( Cultural Operations )

शकरकंद की बुवाई से पहले इसके खेत को अच्छे से तैयार कर लिया जाता है, इसके लिए खेत की सबसे पहले गहरी जुताई की जाती है जुताई के बाद खेत को कुछ देर के लिए खुला छोड़ दें। इससे खेत की मिट्टी को अच्छी धूप मिलती है और मिट्टी में मौजूद हानिकारक तत्व पूरी तरह नष्ट हो जाते हैं। खेत की पहली जुताई के बाद प्रति हेक्टेयर खाद देनी होती है। खाद को खेत में डालने के बाद खाद को मिट्टी में अच्छी तरह मिला दिया जाता है। इसके बाद खेत में पानी लगाकर जुताई की जाती है, जुताई के बाद जब खेत की मिट्टी सूखी दिखाई देने लगती है, उस समय खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कल्टीवेटर से की जाती है।

शकरकंद की उन्नत किस्में ( Improved Varieties of Sweet Potato )

शकरकंद की उन्नत किस्मों में गौरी, श्री कनक, सा सफेद, पूसा रेड, पूसा सुहावनी, एच-268, एस-30, वर्षा और कोनकन, अशवनी, राजेन्द्र शकरकंद-35, 43 और 51, करन, भुवन संकर, सीओ-1, आदि शकरकंद की प्रमुख किस्में हैं।

शकरकंद बोने का सही समय और तरीका ( Right Time and Method of Planting Sweet Potatoes )

शकरकन्द की खेती रबी ( अक्टूबर और नवंबर  ), खरीफ ( मार्च से अप्रैल ) तथा वर्षा ऋतुb ( July -August ) तीनों मौसम में की जाती है। इसकी खेती लता तथा कन्द दोनों माध्यम से की जाती है। इसके प्रत्येक पौधे के बीच एक फीट की दूरी रखी जाती है और कटिंग को जमीन में 20 सेंटीमीटर की गहराई में लगाया जाता है। पौधा लगाने के बाद उसे चारों तरफ से मिट्टी से अच्छी तरह ढक दें। शकरकंद के पौधों की रोपाई समतल भूमि में भी की जा सकती है, इसके लिए इन्हें क्यारियों में तैयार कतारों में लगाया जाता है। इसके बाद पौधों को 40 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है जिसमें प्रत्येक कतार के बीच दो फीट की दूरी रखी जाती है।

शकरकंद के पौधों की सिंचाई ( Irrigation of Sweet Potato Plants )

रोपित पौध के आधार पर शकरकंद के पौधों की सिंचाई की जाती है। यदि इसके पौधों को गर्मी के मौसम में रोपा गया है तो रोपाई के तुरन्त बाद पानी देना चाहिए। इस दौरान पौधों की सप्ताह में एक बार सिंचाई की जाती है। इससे खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी बनी रहती है तथा कंदों का विकास अच्छी तरह हो जाता है। यदि पौधों को बरसात के मौसम में लगाया जाता है, तो उन्हें अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसके अलावा ठंड के मौसम में ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

शकरकंद की खेती करने वाले राज्य ( Sweet Potato Cultivating States )

बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक भारत के प्रमुख राज्य उत्पादक राज्य जहा शकरकंद खेती की जाती हैं।

शकरकंद की खेती में लागत और कमाई ( Cost and Earnings in Sweet Potato Cultivation )

एक एकड़ में शकरकंद की खेती के लिए औसतन एक किसान को 10,450 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। एक एकड़ में शकरकंद की खेती करते हैं तो आपको 9 क्विंटल तक की उपज मिल सकती है। इसे बाजार में 20 रुपये किलो भी बेचते हैं तो भी आप आसानी से 2.25 लाख रुपये का मुनाफा कमा सकते है।

आप शबला सेवा की मदद कैसे ले सकते हैं? ( How can you take help of Shabla Seva? )

  1. आप हमारी विशेषज्ञ टीम से खेती के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  2. हमारे संस्थान के माध्यम से आप बोने के लिए उन्नत किस्म के बीज प्राप्त कर सकते हैं।
  3. आप हमसे टेलीफोन या सोशल मीडिया के माध्यम से भी जानकारी और सुझाव ले सकते हैं।
  4. फसल को कब और कितनी मात्रा में खाद, पानी देना चाहिए, इसकी भी जानकारी ले सकते हैं।
  5. बुवाई से लेकर कटाई तक, किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न होने पर आप हमारी मदद ले सकते हैं।
  6. फसल कटने के बाद आप फसल को बाजार में बेचने में भी हमारी मदद ले सकते हैं।
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