औषधीय पौधों की खेती से आर्थिक सेहत तंदुरुस्त

Plantation-agriculture
न कोई रासायनिक खाद और न ही बहुत अधिक सिंचाई की जरूरत। पर्यावरण के अनुकूल खेती कर बेहतर फसल। यह सब संभव हो रहा है औषधीय पौधों की खेती से। इसे कर रहे हैं मधुबनी जिला के युवा किसान अविनाश कुमार। उनके पदचिन्हों पर चलते हुए आधा दर्जन किसान इसे अपना चुके हैं।
जिला मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर बाबू बरही प्रखंड में बसा है छौरही गांव। इस गांव के युवा अविनाश जी शबला सेवा संस्थान, गोरखपुर के सहयोग से औषधीय पौधों की खेती कर न केवल कम खर्च में बेहतर आय कर रहे हैं, वरन जैविक विधि अपना पर्यावरण बचाने का भी काम कर रहे हैं। उन्होंने तीन साल पहले संस्थान के सहयोग से पहले कौंच फिर ब्राह्माी की खेती शुरू की। पारंपरिक फसल की तुलना में इसकी खेती अधिक लाभदायक है। 
एक एकड़ कौंच की खेती से पांच माह में करीब 35 हजार रुपये का लाभ मिल जाता है। खर्च करीब तीन हजार होता है। इतना ही खर्च और आमदनी ब्राह्माी की खेती में है। रासायनिक की जगह गोबर की खाद का प्रयोग होता है। पेड़-पौधे के पास और बेकार पड़ी जमीन में इसकी खेती कर सकते हैं। ऊंची जमीन पर भी फसल हो जाती है। जलभराव वाली जमीन पर इसकी खेती संभव नहीं है। खासियत यह है कि इसे आप बंजर जमीन में भी उगा हैं।

इसके पत्ते जमीन में गिरकर खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं। कौंच की जड़ प्राकृतिक रूप से भरपूर नाइट्रोजन खेत को उपलब्ध कराती रहती है। अविनाश जी वर्ष 2015 में कौंच की बोवाई की। बाद में ब्राह्माी की भी खेती करने लगे। अभी तीन एकड़ में कौंच और एक एकड़ में ब्राह्माी की खेती कर रहे हैं। उनकी सफलता देख डॉ. एपी सिंह और सुमन कुमार सहित आधा दर्जन किसान भी यह खेती कर रहे हैं।

सिमित शुल्क के साथ (सामान्यतः निशुल्क) बीज और प्रशिक्षण की सुविधा

शबला सेवा संस्थान के अध्यक्षा किरण यादव का कहना है कि किसानों को सिमित शुल्क के साथ (सामान्यतः निशुल्क) बीज और प्रशिक्षण दिया जाता है। किसान के घर पर बाजार उपलब्ध कराते हैं। उपज भी हम खरीदते हैं। खेती करने से पहले फसल का मूल्य निर्धारित किया जाता है। बाजार में फसल की कीमत कम होने पर भी निर्धारित मूल्य पर संस्था खरीदती है।

कृषि पदाधिकारी, रेवती रमण ने बताया कि अविनाश जी ने औषधीय खेती कर किसानों को नई राह दिखाई है। उन्होंने विभाग से कोई मदद नहीं मांगी है। अन्य किसानों को भी इनसे प्रेरणा लेकर औषधीय खेती को अपनाना चाहिए।

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