गिलोय का उपयोग, फायदा एवं गिलोय की खेती

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प्राचीन समय में कई बीमारियों का उपचार करने के लिए जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता था। समय के साथ बदलाव आया, लेकिन आज भी कई बीमारियों में जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाता है। गिलोय ( Giloy ) प्राचीन जड़ी-बूटियों में से एक है। इसे गुडूची, छिन्नरुहा, चक्रांगी आदि कई नामों से जाना जाता है। इसकी बहुवर्षीय आयु और अमृत के समान गुणकारी होने के कारण इसका नाम अमृता है। गिलोय का वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कार्डिफ़ोलिया ( Tinospora Cardifolia ) है। गिलोय भारतीय की मूल निवासी तथा औषधीय पौधा है जो चढ़ाई वाली झाड़ी के रूप में पहचानी जाती है। यह झाड़ी लगभग 30 फीट लंबी हो सकती है और इसकी तने पतली और हरे रंग की होती हैं, जबकि पत्तियाँ छोटी और हरी होती हैं। गिलोय का फल मटर के बीज जैसा दिखता है और इसका तना हरा होता है जो एक रस्सी जैसा दिखता है। इसकी पत्तियाँ स्वाद में कसैली, कड़वी और तीखी होती हैं।
गर्मियों में गिलोय पौधे पर छोटे-छोटे पीले फूल लगते हैं, जो नर पौधे में गुच्छों के रूप में और मादा पौधे में एकाएक मौजूद होते हैं। यह फूलों की पहचान करने का माध्यम बनाता है जिसके माध्यम से गिलोय के नर और मादा पौधे को अलग किया जा सकता है। गिलोय के नर पौधे में फूलों के गुच्छे पाए जाते हैं, जो कई छोटे पीले फूलों से मिलकर बने होते हैं। वे सम्पूर्ण गिलोय पौधे पर एक साथ देखे जा सकते हैं। गिलोय के मादा पौधे में फूल एकाएक प्रकट होते हैं, जिनका आकार और संरचना नर पौधों के फूलों से थोड़ा अलग होता है। ये फूल एकाएक खुलते हैं और गिलोय के मादा पौधे पर एकाएक देखे जा सकते हैं। यह फूलों की विशेषता गिलोय के प्रजनन तत्वों की पहचान करने में मदद करती है और पौधे के वृद्धि और प्रजनन की प्रक्रिया को समझने में मदद करती है। गिलोय की एक खास विशेषता है कि जब यह किसी पेड़ पर चिपक कर उगती है, तो उस पेड़ के कई औषधीय गुण गिलोय के औषधीय गुणों में समाहित हो जाते हैं। इसी कारण से नीम के पेड़ पर मौजूद गिलोय की बेल को लाभकारी और सर्वोत्तम माना जाता है।

गिलोय एक परस्पर संयोजनी पौधा है और यह अन्य पेड़ों के साथ जुड़कर उगती है। जब यह नीम के पेड़ पर चिपकती है, तो उस पेड़ के वनस्पतिक गुण गिलोय के औषधीय गुणों को प्रभावित कर सकते हैं। नीम खुद एक प्रमुख औषधीय पौधा है और उसमें कई स्वास्थ्य लाभकारी गुण पाए जाते हैं। जब गिलोय नीम के साथ जुड़ती है, तो इससे एक संयोजनी अद्यात्मिक गुणसूत्र पैदा होता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। नीम और गिलोय का संयोजन आयुर्वेदिक उपचार में आमतौर पर उपयोग किया जाता है। बहुत पुरानी गिलोय में तना जितनी मोटा हो सकता है, उसी स्थान से जड़ें निकलकर नीचे लटकती हैं। ये जड़ें खेतों की चट्टानों या मेड़ों पर जमीन में समाती हैं और अन्य लताओं को जन्म देती हैं।

गिलोय में पाए जाने वाले पोषक तत्व ( Nutrients Found in Giloy )

आयरन ( Iron ): गिलोय में आयरन होता है जो मांसपेशियों के लिए महत्वपूर्ण होता है और शरीर के रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करता है।

फॉस्फोरस ( Phosphorus ): गिलोय में फॉस्फोरस होता है जो हड्डियों, दांतों और शरीर की सेलों के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

जिंक ( Zinc ): गिलोय में जिंक होता है जो शारीरिक विकास और रक्त प्रवाह के लिए आवश्यक होता है। यह इम्यून सिस्टम को मजबूत रखने में मदद करता है और विषाणुओं के खिलाफ रोग प्रतिरोध में मदद करता है।

मैग्नीशियम ( Magnesium ): गिलोय में मैग्नीशियम होता है जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होता है। यह मांसपेशियों, हड्डियों, दांतों और न्यूरोलॉजिकल ( neurological)फंक्शन को सुधारने में मदद करता है।

इसके अलावा, गिलोय में गिलोइन नामक ग्लूकोसाइड पाया जाता है, जो इसके औषधीय गुणों के लिए महत्वपूर्ण होता है। गिलोय एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidant), एंटी-इंफ्लेमेटरी (Anti-inflammatory) और कैंसर-रोधी गुणों का स्रोत है। इसके अलावा, गिलोय में मैगनीज (Manganese), पामेरिन (Palmarin), टीनोस्पोरिन (Tinosporin) और टीनोस्पोरिक एसिड (Tinosporic acid) जैसे विभिन्न विटामिन और औषधीय यौगिक पाए जाते हैं।

गिलोय के सेवन के स्वास्थ्यवर्धक फायदे ( Health Benefits of Consuming Giloy )

प्रतिरोधशक गुण ( Resistance Properties ): गिलोय में पाए जाने वाले औषधीय ण प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में मदद करते हैं और विभिन्न बीमारियों और संक्रमणों से लड़ने में सहायता कर सकते हैं।

एंटीऑक्सीडेंट गुण ( Antioxidant Properties ): गिलोय में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण सेहत को दुरुस्त रखने में मदद करते हैं। इससे शरीर को वायरस और संक्रमण के हानिकारक प्रभावों से बचाया जा सकता है।

शारीरिक आराम को संतुलित करना ( Balancing Physical Comfort ): गिलोय में मौजूद तत्वों के कारण इसका सेवन शारीरिक और मानसिक तनाव को कम करने और आराम को संतुलित करने में मदद कर सकता है।

पाचन में सुधार ( Improve Digestion ): गिलोय का सेवन करने से पाचन तंत्र में सुधार हो सकता है और अपच, गैस, एसिडिटी और पुराने संक्रमण जैसी समस्याओं को कम किया जा सकता है।

श्वसन समस्याओं में सुधार ( Improve Respiratory Problems ): गिलोय का सेवन ब्रोन्कियल रोगों और श्वास संबंधी समस्याओं के इलाज में सहायक हो सकता है।

मस्तिष्क स्वास्थ्य ( Mind Health ): गिलोय मस्तिष्क स्वास्थ्य को बढ़ाने और मस्तिष्क की कार्यक्षमता में सुधार करने में मदद कर सकता है।

गिलोय की बागवानी ( Giloy’s Gardening )

गिलोय के फायदों को देखते हुए पिछले कुछ सालों से लोगों में जागरूकता बढ़ी है। गिलोय एक विशेष प्रकार की लता है जो अपने आप में ही रोगों के खिलाफ लड़ने की क्षमता रखती है। इसकी वनस्पतिक विशेषताओं के कारण, इसे विभिन्न स्थानों पर पाया जा सकता है और इसे अपने घर में भी उगाया जा सकता है। गिलोय की खेती करने से आप अपने घर में स्वस्थ और उपयोगी पौधा प्राप्त कर सकते हैं, जिससे आप इसके औषधीय गुणों का उपयोग कर सकते हैं। यह आपको आनंददायक अनुभव प्रदान करेगा और आपके घर की सुंदरता को बढ़ाएगा।

गिलोय की बागवानी में मिट्टी, तापमान एवं जलवायु ( Soil, Temperature and Climate in Giloy’s Gardening )

यह लता आमतौर पर जंगली स्थानों, खेतों, घरों और पहाड़ों की चट्टानों पर पाया जाता है। गिलोय के पौधे हल्की रेतीली और दोमट मिट्टी में तेजी से बढ़ते हैं। यह मिट्टी के अनुसार विभिन्न प्रकार की जगहों में उगाया जा सकता है, लेकिन बारिश और जलभराव में इसका विकास ठीक से नहीं हो पाता है। इसलिए, गर्म जलवायु में गिलोय की खेती करना फायदेमंद हो सकता है। यह एक बारहमासी लता होती है, जिसका मतलब है कि इसका पौधा साल में बारह महीने विकसित होता है।

गिलोय की बागवानी तैयारी एवं पौध रोपण ( Preparation and Planting in Giloy’s Gardening )

गिलोय की बागवानी में तैयारी के लिए किसी विशेष मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है, यदि गोबर की खाद है तो 100 किलो गोबर की खाद एक हेक्टेयर में वही डालें जहां आपको पौधे लगाने हैं, पौधों की संख्या के अनुसार 100 किलो गोबर की खाद को बराबर करके उपयोग करें।
गिलोय की कटिंग्स जून-जुलाई के महीनों में प्राप्त की जा सकती हैं। आप पुराने तनों से कटिंग्स प्राप्त करके उन्हें सीधे खेत में लगा सकते हैं। एक हेक्टेयर भूमि के लिए लगभग 2500 कटिंग्स की आवश्यकता होती है। यदि आप बीज से गिलोय को उगाना चाहते हैं, तो ध्यान दें कि बीज उत्पादन में कटिंग्स की तुलना में दोगुना समय लगता है।
गिलोय के कटे हुए मृत तने में कभी-कभी नमी मिलने पर या बरसात के समय गिलोय उग आती है, तो अंकुरित भाग को दोनों ओर से 2 इंच तक काट लें और कलम को सीधे मिट्टी में इस प्रकार दबा दें कि अंकुरित हरा पौधा बाहर आ जाए। इस तरह से भी गिलोय को बिना किसी मेहनत के लगाया जा सकता है।

गिलोय की उन्नत किस्में ( Improved Varieties of Giloy )

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गिलोय की विभिन्न किस्मों में अलग-अलग औषधीय गुण हो सकते हैं और चिकित्सा में विभिन्न प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है।
टिनोस्पोरा साइनेंसिस – यह गिलोय की एक किस्म है। इसका उपयोग चीनी चिकित्सा में इसके औषधीय गुणों के लिए किया जाता है।
टिनोस्पोरा क्रिस्पा – गिलोय की यह किस्म मलेशिया सहित दक्षिण पूर्व एशिया की मूल निवासी है।
टीनोस्पोरा कॉर्डिफ़ोलिया – जिसे “मूनसीड” या “इंडियन गिलोय” के रूप में भी जाना जाता है, भारत और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य हिस्सों में उगने वाली एक लता है।

गिलोय के उपयोगी भाग ( Useful Parts of Giloy )

गिलोय की पत्तियां, जड़ और तना तीनों ही भाग सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं, लेकिन ज्यादातर बीमारियों के इलाज में गिलोय के तने का इस्तेमाल किया जाता है। गिलोय के तने को पानी में उबालकर जूस बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। गिलोय के फल भी उपयोग में लाये जाते हैं। गिलोय की पत्तियों को पीसकर उसका रस एक चम्मच में लेने से अच्छा लाभ मिलता है। इसके अलावा गिलोय की पत्तियों को सादा भी चबाया जा सकता है।

गिलोय का रखरखाव ( Maintenance of Giloy )

गिलोय का रखरखाव के लिए पर्याप्त धूप, पानी और पोषक तत्व मिलने पर गिलोय के पौधों को उगाना और उनकी देखभाल करना अपेक्षाकृत आसान होता है। अपने गिलोय के पौधे को नियमित रूप से पानी दें, लेकिन पानी देने के बीच मिट्टी को थोड़ा सूखने दें। अधिक पानी देने से जड़ सड़न हो सकती है, इसलिए पानी देने से पहले मिट्टी की नमी के स्तर की जाँच करें। बढ़ते मौसम के दौरान हर दो से तीन सप्ताह में अपने गिलोय के पौधे को संतुलित उर्वरक के साथ खाद दें। नई वृद्धि को प्रोत्साहित करने और इसके आकार को बनाए रखने के लिए अपने गिलोय के पौधे की नियमित रूप से छँटाई करें।
याद रखें कि गिलोय एक चढ़ने वाला पौधा है और इसे चढ़ने के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता होगी, जैसे बाड़ या या ऊँचा पेड़।

गिलोय की कटाई ( Harvesting Giloy )

वैसे तो वर्ष के किसी भी समय किया जा सकता है जब तना लगभग 1 इंच मोटा हो। लेकिन तनों की कटाई का अच्छा समय सितंबर से नवंबर में होता है, जब पत्तियाँ तनों से अलग होने लगती हैं। केवल चार से पांच वर्ष पुरानी बेलों को ही काटना चाहिए। चार-पांच साल बाद एक पौधे से लगभग 10 किलो गिलोय की बेल निकलती है। चार से पांच वर्ष बाद प्रति हेक्टेयर (कम से कम 100 लतायें) 1000 किलोग्राम ताजी और 250 किलोग्राम सूखी उपज प्राप्त होती है।

गिलोय के उत्पादक राज्य ( Giloy Producing States )

गिलोय भारत के सभी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पायी जाती है। ठन्डे और ज्यादा बर्षा वाले प्रदेशों को छोड़कर यह भारत में उत्तर दिशा में पश्चिम बंगाल, बिहार, कुमाऊं, असम, दक्कन, कंकण, कर्नाटक और केरल तक फैला हुआ है। गिलोय की प्रजाति म्यांमार, मलेशिया, वियतनाम, बांग्लादेश, उत्तरी अफ्रीका, दक्षिण अफ्रीका में भी पाई जाती है।

गिलोय की बागवानी में लागत और कमाई ( Cost and Earning in Giloy Gardening )

गिलोय की बागवानी में एक हेक्टेयर में सारे खर्चे मिलाकर शुरुवात में लागत लगभग 25 000 रुपये आती है। इसकी अधिक मांग, कम उत्पादकता और बहुगुणी होने के कारण इसका बाजार में कीमत लगभग 8000 से 10000 रुपये प्रति किलोग्राम तक है।

आप शबला सेवा की मदद कैसे ले सकते हैं? ( How Can You Take Help of Shabla Seva? )

  1. आप हमारी विशेषज्ञ टीम से खेती के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  2. हमारे संस्थान के माध्यम से आप बोने के लिए उन्नत किस्म के बीज प्राप्त कर सकते हैं।
  3. आप हमसे टेलीफोन या सोशल मीडिया के माध्यम से भी जानकारी और सुझाव ले सकते हैं।
  4. फसल को कब और कितनी मात्रा में खाद, पानी देना चाहिए, इसकी भी जानकारी ले सकते हैं।
  5. बुवाई से लेकर कटाई तक, किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न होने पर आप हमारी मदद ले सकते हैं।
  6. फसल कटने के बाद आप फसल को बाजार में बेचने में भी हमारी मदद ले सकते हैं।

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