अदरक का उपयोग, फायदा एवं अदरक की खेती
अदरक (Ginger) का वानस्पतिक नाम जिनजिबेर ओफिसिनेल (Zingiber officinale) है, जो जनजीबेरेसी (Zingiberace) परिवार से सम्बंध रखती है। जिनजीबेरेसी परिवार का महत्व इसलिऐ अधिक है क्योंकि इसको “मसाल परिवार“ भी कहा जाता है। अदरक शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के स्ट्रिंगावेरा से हुई, जिसका अर्थ होता है, एक ऐसा सींग या बारहा सिंधा के जैसा शरीर। अदरक मुख्य रूप से उष्ण क्षेत्र की फसल है। संभवत: इसकी उत्पत्ति दक्षिणी और पूर्व एशिया में भारत या चीन में हुई। भारत की अन्य भाषाओं में अदरक को विभिन्न नामो से जाना जाता है जैसे– गुजराती में आदू , मराठी में अले, बंगाली में आदा, तमिल में इल्लाम , तेलगू में आल्लायु, कन्नड में अल्ला तथा हिन्दी, पंजाबी में अदरक आदि। अदरक का प्रयोग प्रचीन काल से ही मसाले, ताजी सब्जी और औषधी के रूप मे चला आ रहा है। अब अदरक का प्रयोग सजावटी पौधों के रूप में भी उपयोग किया जाने लगा है। अदरक के कन्द विभिन्न रंग के होते हैं । जमाइका की अदरक का रंग हल्का गुलाबी, अफ्रीकन अदरक (हल्की हरी) होती है।
अदरक में पाए जाने वाले पोषक तत्व ( Nutrients found in Ginger )
अदरक में कई महत्वपूर्ण पोषक तत्व जैसे विटामिन (Vitamin) C, कैल्शियम (Calcium), फॉस्फोरस (Phosphorus), आयरन (Iron), जिंक (Zink), कॉपर (Copper), मैंगनीज (Magness) और क्रोमियम (Chromium) पाए जाते हैं।
अदरक का उपयोग एवं स्वास्थवर्धक फायदे ( Uses and health benefits of Ginger )
अदरक का प्रयोग मसाले, औषधिया तथा सौन्र्दय सामग्री के रूप में हमारे दैनिक जीवन में वैदिक काल से चला आ रहा हैं। खुशबू पैदा करने के लिये आचारो, चाय के अलावा कई व्यजंनो में अदरक का प्रयोग किया जाता हैं। सर्दियों में खाँसी जुकाम आदि में किया जाता हैं। अदरक का सोंठ कें रूप में इस्तमाल किया जाता हैं। अदरक का टेल, चूर्ण तथा एग्लिओरजिन भी औषधियो में उपयोग किया जाता हैं। सर्दी–जुकाम, खाँसी ,खून की कमी, पथरी, लीवर वृद्धि, पीलिया, पेट के रोग, वाबासीर, अमाशय तथा वायु रोगीयों के लिये दवाओ के बनाने में प्रयोग की जाती हैं। चटनी, जैली, सब्जियो, शर्बत, लडडू, चाट आदि में कच्ची तथा सूखी अदरक का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता हैं। अदरक का तेल, पेस्ट, पाउडर तथा क्रीम को बनाने में सौंदर्य प्रसाधन में किया जाता हैं ।
अदरक की खेती ( Ginger Cultivation )
सेंटीमीटरअदरक एक लम्बी अवधि की फसल हैं, जिसे अधिक पोषक तत्चों की आवश्यकता होती है । उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए । खेत तैयार करते समय 200 कुन्टल हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामन्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए। अदरक को हल्की छाया देने से खुला में बोई गयी अदरक से 25 प्रतिशत अधिक उपज प्राप्त होती है तथा कन्दों कीी गुणवत्ता में भी उचित वृद्धि पायी गयी हैं। पलवार के कारण खेत में खरपतवार नही उगते अगर उगे हो तो उन्हें निकाल देना चाहिये, दो बार निदाई 4 – 5 माह बाद करनी चाहिये । साथ ही मिट्टी भी चढाना चाहिऐ । जब पौधे 20 – 25 सेमी .ऊँची हो जाये तो उनकी जड़ो पर मिट्टी चढाना आवश्यक होता हैं । इससे मिट्टी भुरभुरी हो जाती है तथा प्रकंद का आकार बड़ा होता है, एवं भूमि में वायु आगमन अच्छा होता हैं । अदरक के कंद बनने लगते है तो जड़ों के पास कुछ कल्ले निकलते हैं । इन्हे खुरपी से काट देना चाहिऐ, ऐसा करने से कंद बड़े आकार के हो पाते हैं ।
अदरक की खेती में मिटटी, तापमन एवं जलवायु ( Soil, Temperature and Climate in Ginger Cultivation )
अदरक की खेती बलुई दोमट जिसमें अधिक मात्रा में जीवाशं या कार्बनिक पदार्थ की मात्रा हो वो भूमि सबसे ज्यादा उपयुक्त रहती है । मृदा का पी.एच.मान 5 – 6.5, अच्छे जल निकास वाली भूमि सबसे अच्छी अदरक की अधिक उपज के लिऐ रहती हैं । एक ही भूमि पर बार–बार फसल लेने से भूमि जनित रोग एवं कीटों में वृद्धि होती हैं, इसलिये फसल चक्र अपनाना चाहिये । उचित जल निकास ना होने से कन्दों का विकास अच्छे से नही होता। इस फसल की सफल खेती के लिए बुआई से अंकुरण तक मध्यम वर्षा, वृद्धि तक अधिक वर्षा और खुदाई से लगभग 1 महिना पहले शुष्क वातावरण अति आवश्यक है। अदरक की खेती वर्षा आधारित और सिंचाई करके भी की जा सकती है।
अदरक की बुवाई एवं खेती की तैयारी ( Preparation for Sowing and cultivation of Ginger )
अदरक के कंद या पौधे की रोपाई के लिए जमीन में 4 – 5 सेंटीमीटर का गड्ढा होना चाहिए। अदरक की बुवाई हमेशा कतारों में करनी चाहिए। इसमें कतारों के बीच की दूरी 35 – 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 30 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। मार्च – अप्रैल में खेत की गहरी जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद खेत को खुला धूप लगने के लिये छोड़ देते हैं । मई के महीने में रोटावेटर से जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी बना लेते हैं। अनुशंसित मात्रा में गोवर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट और नीम की खली का सामान रूप से खेत में डालकर पुन देशी हल से 2 – 3 बार आड़ी–तिरछी जुताई करके पाटा चला कर खेत को समतल कर लेना चाहिये।
अदरक की उन्नत किस्में ( Improved varieties of Ginger )
नदिया, मरान, जोरहट, सुरूचि, सुरभि, वारदा, महिमा, रेजाठा, अथिरा, अस्वाथी, हिमगिरी| ताजे अदरक हेतु रिपोडीजेनेरो, चाइना, विनाड और टफन्जिया आदि प्रमुख है| सूखा अदरक हेतु करक्कल, नदिया, मारन, विनाङ, मननटोडी, वल्लूवनद, इमड और कुरूप्पमपदी आदि प्रमुख है| जेल हेतु– स्लिवा स्थानीय, नरसापट्टम, इमड, चेमड और हिमाचल प्रदेश आदि प्रमुख है| तेल हेतु इमड, चेमड, चाइना, कुरूप्पमपदी और रियो डी जेनेरो आदि प्रमुख है|
अदरक की खेती में बीज की मात्रा एवं बीजोपचार ( Seed quantity and seed treatment in ginger cultivation )
अदरक 20-25 कुंटल प्रकन्द/हैक्टेयर बीज दर उपयुक्त रहता हैं तथा पौधों की संख्या 140000/हैक्टेयर पर्याप्त मानी जाती हैं । मैदानी भागो में 16 -18 kg है। बीजों की मात्रा का चुनाव किया जा सकता हैं क्योंकि अदरक की लागत का 40 – 46% भाग बीज में लग जाता है इसलिये वीज की मात्रा का चुनाव, प्रजाति, क्षेत्र एवं प्रकन्दों के आकार के अनुसार ही करना चाहिये। बीज उपचार मैंकोजेव फफूँदी से करने के बाद ही प्रर्वधन हेतु उपयोग करना चाहिये। अदरक के बीज का चयन बीज हेतु 6 – 8 माह की अवधि वाली फसल में पौधों को चिन्हित करके काट लेना चाहिये। अच्छे प्रकन्द के 20 सेंटीमीटर लम्बे कन्द जिनका वनज 20-25 गा्रम तथा जिनमें कम से कम तीन गाँठे हो प्रवर्धन हेतु कर लेना चाहिये।
अदरक की खेती में सिंचाई एवं खाद उर्वरक ( Irrigation and Manure Fertilizer in Ginger Cultivation )
अदरक एक लम्बी अवधि की फसल हैं जिसे अधिक पोषक तत्चों की आवश्यकता होती है । उर्वरकों का उपयोग मिट्टी परीक्षण के बाद करना चाहिए । खेत तैयार करते समय 200 कुन्टल हेक्टेयर के हिसाब से सड़ी हई गोबर या कम्पोस्ट की खाद खेत में सामन्य रूप से फैलाकर मिला देना चाहिए। अदरक की खेती वर्षा आधारित और सिंचाई करके भी की जा सकती है।
अदरक की खेती भारत में किन किन राज्यों में की जाती है ( In Which states Ginger is cultivated in India? )
भारत में अदरक की खेती का क्षेत्रफल 150 हजार हेक्टेयर है जो उत्पादित अन्य मसालों में प्रमुख हैं। भारत को विदेशी मुद्रा प्राप्त का एक प्रमुख स्त्रोत हैं। भरत विश्व में उत्पादित अदरक का आधा भाग पूरा करता हैं। भारत में अदरक की खेती मुख्यत: केरल, उडीसा, आसाम, उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा उत्तराँचल प्रदेशों में व्यवसायिक फसल के रूप में की जाती है। देश में केरल अदरक उत्पादन में प्रथम स्थान पर हैं।
अदरक की खेती में लागत एवं कमाई ( Cost and earning in Ginger Cultivation )
ताजा हरे अदरक के रूप में 150 कुन्टल उपज/हेक्टेयर प्राप्त हो जाती है जो सूखाने के बाद 30 कुन्टल तक आ जाती हैं। उन्नत किस्मो के प्रयोग एवं अच्छे प्रबंधन द्वारा औसत उपज 300 कुन्टल /हेक्टेयर तक प्राप्त की जा सकती है। इसके लिये अदरक को खेत में 3-4 सप्ताह तक अधिक छोड़ना पडता है जिससे कन्दों की ऊपरी परत पक जाती है, मोटी भी हो जाती हैं।
आप शबला सेवा की मदद कैसे ले सकते हैं? ( How can you take help of Shabla Seva? )
- आप हमारी विशेषज्ञ टीम से खेती के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
- हमारे संस्थान के माध्यम से आप बोने के लिए उन्नत किस्म के बीज प्राप्त कर सकते हैं।
- आप हमसे टेलीफोन या सोशल मीडिया के माध्यम से भी जानकारी और सुझाव ले सकते हैं।
- फसल को कब और कितनी मात्रा में खाद, पानी देना चाहिए, इसकी भी जानकारी ले सकते हैं।
- बुवाई से लेकर कटाई तक, किसी भी प्रकार की समस्या उत्पन्न होने पर आप हमारी मदद ले सकते हैं।
- फसल कटने के बाद आप फसल को बाजार में बेचने में भी हमारी मदद ले सकते हैं।
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