सफ़ेद चन्दन और औषधीय पौधों की खेती
तकनीक और जानकारी बढ़ने के साथ अब किसान भी पारम्परिक खेती को छोड़ कर आधुनिक खेती और अनाज के साथ ही सफ़ेद चन्दन , औषधीय पौधों और जड़ी-बुंटियों की खेती कर रहे है। इससे न केवल उनके खेतों की मिट्टी की उपजता बढ़ रही है बल्कि अच्छी-खासी आमदनी भी हो रही है। ऐसा ही कुछ किया है
संस्था के संस्थापक डॉ अविनाश कुमार ( Dr. Avinash Kumar ) ने ।
सफ़ेद चन्दन खास तरह की खुशबू और इसके औषधीय गुणों के कारण भी इसकी पूरी दुनिया में भारी डिमांड है। इसकी एक किलो लकड़ी दस हजार रुपए तक में बिक रही है। इसी एक किलो लकड़ी की कीमत विदेशों में तो बीस से पचीस हजार रुपए तक है।
अविनाश कुमार ने पारंपरिक खेती को छोड़कर जड़ी-बूटी एवं दवाई के रूप में इस्तेमाल होने वाले पौधों की खेती करने का निर्णय लिया। जब उन्होंने पारंपरिक खेती छोड़कर औषधीय पौधों की खेती के बारे में सोचा तो लोगों ने हतोत्साहित भी किया, डराया और आज भी डराते हैं कि इस काम में नुकसान होगा। इसके बावजूद अविनाश कुमार डटे रहे।
अविनाश कुमार मूलत: बिहार के मधुबनी जिले के हैं, लेकिन पिताजी गोरखपुर में रेलवे कर्मचारी थे और इस कारण उनका लालन-पोषण तथा शिक्षा गोरखपुर में ही पूरी हुई है। अविनाश जी ने एमए करने के साथ-साथ पत्रकारिता में डिप्लोमा भी लिया है, लेकिन कुछ अलग करने की चाह ने उन्हें खेती-किसानी की तरफ मोड़ दिया।
संस्था के संस्थापक डॉ अविनाश कुमार
नौकरी छोड़ कर किया खेतीबाड़ी करने का निर्णय
40 वर्षीय अविनाश कुमार ने खेतीबाड़ी शुरू करने से पहले उन्होंने रिसर्च करने का काम किया। गोखरपुर और मधुबनी में अपने पुश्तैनी खेतों की मिट्टी , जलवायु और अन्य कारको का बारीकी से पड़ताल की। इसके लिए वो बाकायदा बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ हॉर्टिकल्चर रिसर्च (आईआईएचआर) में ट्रेनिंग के लिए भी गए। जहाँ पर कृषि वैज्ञानिकों ने उनको कई औषधीय पौधों की खेती के बारे में प्रशिक्षित किया है।
वैसे तो अविनाश जी ने 2005 में ही नौकरी छोड़ दी और खेती-बाड़ी में जुट गए लेकिन पारंपरिक खेती में अधिक मेहनत और लागत के बाद भी मुनाफा कम मिलता था। अपने पत्रकारिता के अनुभव से उन्होंने जानकारी जुटाई और 2016 में उन्होंने औषधीय पौधों की खेती करने का मन बनाया।
इन जड़ी-बूटियों की बाजार में आयुर्वेद की बढ़ती लोकप्रियता के कारण काफी मांग है। कई बड़ी कंपनियां जैसे डाबर, पंतजलि , हिमालया और हिंदुस्तान यूनिलीवर इन्हें हाथों-हाथ खरीदती हैं। लिहाजा अपने 22 एकड़ खेतों में उन्होंने तुलसी, ब्रह्मी, कौंच, आंवला, शंखपुष्पी, मंडूकपर्णी समेत कई जड़ी बूटियां उगानी शुरू की।
कम लागत में अधिक मुनाफे के लिए करते है जड़ी-बूंटियो की खेती
अविनाश जी के काम में उनकी पत्नी भी साथ देती है। अविनाश जी ने खेती करने के लिए 1.20 लाख रुपए की पूंजी लगाकर शुरुआत की। अपनी मेहनत के दम पर दो साल में ही उन्होंने अपनी सालाना कमाई 40 से 45 लाख रुपए तक पहुंचा दी। फिलहाल वे लोग 14 प्रकार की जड़ी-बूटियां उगा रहे हैं। इसमें वे जैविक खाद का प्रयोग करते हैं।
उन्होंने बताया कि गेहूं, धान की खेती में एक एकड़ फसल से 4-5 हजार की कमाई होती है जबकि इसमें 30-35 हजार रुपए तक की कमाई हो सकती है।
आने वाले कुछ वर्षों में सफेद चंदन का भाव आसमान छू सकता है। चंदन की खेती में सबसे मोटी कमाई है। मात्र अस्सी हजार से एक लाख रुपए लगाकर 60 लाख रुपए तक का मुनाफा हो रहा है।
उन्होंने शबला सेवा संस्थान नाम से अपनी संस्था भी शुरू की, जिसमें उनकी पत्नी किरण यादव अध्यक्षा हैं। पिछले दो सालों के दौरान प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के 2000 किसान उनसे जुड़े, जिन्हें अविनाश कुमार औषधीय खेती की बारीकियां भी सिखाते हैं।