चिचिण्डा का उपयोग, फायदा एवं चिचिण्डा की खेती
चिचिण्डा जिसे वैज्ञानिक रूप से ट्राइकोसैंथेस कुकुमेरिना ( Trichosanthes cucumerina ) कहा जाता है, कई स्थानीय नामों से भी जाना जाता है जैसे कि हिंदी में चिचिण्डा या पडवाल, तेलुगु में पोटलकाया, बंगाली में चिचिंगा, तमिल में पुडलंकाई और मलयालम में पदवलंगा। यह अपने अत्यधिक स्वास्थ्य लाभों के लिए अग्रणी बना हुआ है और व्यापक रूप से भारत भर में लोकप्रिय स्थानीय व्यंजनों में शामिल है, साथ ही साथ पेट, यकृत और त्वचा की बीमारियों को कम करने में भी शामिल है। चिचिण्डा का पौधा एक लता है जिसमें धागे जैसे तने होते हैं जिन्हें टेंड्रिल कहा जाता है। अपरिपक्व फल हरे और लम्बे होते हैं, एक नरम, मांसल बनावट और नरम स्वाद के साथ, जबकि परिपक्व फल अपने कड़वे स्वाद के कारण लंबे, लाल रंग का होता हैं।
चिचिण्डा में पाये जाने वाले खनिज ( Minerals Found in Snake Gourd )
चिचिण्डा में प्रोटीन (Protein), फाइबर (Fiber), कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates), पोटेशियम (Potassium) , फास्फोरस (Phosphorus), सोडियम (Sodium), मैग्नीशियम (Magnesium), जस्ता (Zink), विटामिन (Vitamin) A, विटामिन E, घुलनशील एसिड पाये जाते है।
चिचिण्डा के स्वास्थ्यवर्धक फायदे ( Health Benefits Of Snake Gourd )
यह शारीरिक द्रव्यों के निर्माण को बढ़ाता है, जो सूखापन और निर्जलीकरण को समाप्त करता है, और गुर्दे और मूत्राशय के सामान्य कामकाज में मदद करता है। चिचिण्डा कब्ज को खत्म करता है। चिचिण्डा प्रतिरक्षा प्रणाली को लाभ पहुंचाने का काम करता है। चिचिण्डा विशेष रूप से त्वचा और बालों की देखभाल करते हैं। चिचिण्डा की कम कैलोरी, उच्च पोषक तत्व संरचना इसे संभवतः मधुमेह विरोधी सब्जी बनाती है। इसका उपयोग सूप, करी, साथ ही स्टर-फ्राई में भी किया जा सकता है।
चिचिण्डा की खेती (Snake Gourd Cultivation )
भारत देश में लंबे समय से चिचिंडा की खेती की जाती है। यह फसल ज्यादातर उत्तर और दक्षिण भारत में उगाई जाती है। बरसात के मौसम में छोटे बगीचों और घर के बगीचों में इसका उत्पादन होता है। भारत के उत्तरी राज्यों में व्यावसायिक खेती बरसात के मौसम में की जाती है। फसल के फल ज्यादातर हरे रंग के होते हैं।
1. चिचिन्डा की खेती के लिए आवश्यक जलवायु भूमि व तापमान (Climate land and temperature required for Snake Gourd cultivation)
चिचिन्डा की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है । बलुई दोमट मिट्टी में सफल उत्पादन किया जा सकता है । वर्षा ऋतु की फसल होने के कारण जल-निकास के उचित प्रबन्ध वाली भूमि ठीक होती है । भूमि का पी. एच. मान 6.0 से 6.5 के बीच का सबसे अच्छा होता है । चिचिन्डा की खेती अधिकतर खरीफ मौसम में की जाती है। चिचिन्डा के लिये गर्म व आर्द्रता वाली जलवायु सबसे अच्छी होती है । ठण्डी जलवायु उचित नहीं होती। कम तापमान होने से फल अधिक नहीं लगते इसलिए अधिक उत्पादन के लिये 30 डी०से०ग्रेड से 35 डी०से०ग्रेड तापमान अच्छा रहता है ।
2. बुवाई का समय एवं पौधे की दूरी (Sowing time and plant distance)
इस फसल का बुवाई का समय जून-जुलाई का महीना सबसे अच्छा माना जाता है । यह खरीफ की फसल है जो वर्षा ऋतु के मौसम में फसल बोई जाती है। बुवाई के 50 दिनों के बाद फल मिलने तैयार हो जाते हैं । जायद की फसल में भी उगाया जा सकता है । जहां पर बाढ़ आदि का भय रहता है । बुवाई खेत में कतारों में अधिकतर बोई जाती है। हाथों द्वारा मजदूरों की सहायता से थामरों में बोते हैं । एक में 3-4 बीज लगाने चाहिए । कतार से कतार की दूरी 120 सेमी. तथा थामरे से थामरे की दूरी 90 सेमी. रखनी चाहिए । थामरों में बीज की गहराई 3-4 सेमी. रखनी चाहिए ।
3. खेती के लिए खेत की तैयारी (Preparing the field for cultivation)
चिचिन्डा की फसल की तैयारी के लिये भूमि को ठीक प्रकार से जोत कर तैयार करना चाहिए । 3-4 जुताई बलुई दोमट भूमि के लिये पर्याप्त होती हैं । खेत की ठीक प्रकार से मिट्टी तैयार करनी चाहिए । मिट्टी को भली-भांति भुरभुरी कर लेनी चाहिए तथा मिट्टी भुरभुरी व ढेले रहित होने पर खेत में मेड़-बंदी करके क्यारियां बना लेनी चाहिए।
4. उन्नत किस्में (improved varieties)
चिचिन्डा की कोई उन्नतिशील जाति नहीं है, लेकिन कुछ कोयम्बटूर तथा पूना की अच्छी किस्म है । ये दो प्रकार की हैं।
(1) हस्की हरी सफेद धारियों वाले फल
(2) गहरी हरी पीली-सी धारियों वाले फल
इन जातियों के फल अलग-अलग लम्बाई के होते हैं जो 50 से 100 सेमी. के लम्बे फल होते हैं । फूलों का रंग अधिकतर सफेद होता है ।
5. पौधों की सिंचाई (Plant irrigation)
आम तौर पर वर्षा कालीन फसल कि सिंचाई करने कि आवश्यकता नहीं पड़ती है यदि अधिक समय तक वर्षा न हो तो आवश्यकता अनुसार सिंचाई कानी चाहिए शुष्क मौषम में पांचवे दिन सिंचाई करनी चाहिए दक्षिण भारत में चिचिंडे कि पूर्ण फसल अवधी में कई सिंचाइयो कि आवश्यकता पड़ती है जिन्हें 15-20 दिन के अंतर पर दिया जाता है।
किन राज्यों में होती है चिचिन्डा की खेती ( In which states Snake Gourd is cultivated )
चिचिन्डा की खेती भारत में कर्नाटक,, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, अत्यधिक उत्पादन वाले राज्य हैं।
चिचिन्डा की खेती में लागत और कमाई ( Cost and Earnings in Snake Gourd Cultivation )
एक एकड़ में चिचिंडा की खेती के लिए औसतन किसान को 10000 रुपए खर्च करने पड़ते हैं। एक एकड़ में चिचिंडा की खेती कर किसान औसतन करीब 8 क्विंटल की उपज प्राप्त कर सकता है। जब कोई किसान अपनी उपज बाजार में बेचता है तो उसे 3500 रुपये प्रति क्विंटल मिलते हैं, तो उसे 8 क्विंटल चिचिंडा के लिए 28000 रुपये मिल सकते हैं। एक एकड़ में चिचिंडा की खेती से किसान को करीब 28000 रुपये की आय होगी।
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